National Tourism Day:mp में है 400 साल पुराना खूनी भंडारा, सतपुड़ा के पहाड़ से रिसकर जलकुंडों में आता है पानी – 400-year-old Kundi Bhandara In Burhanpur Water Seeps From The Mountains Of Satpura In Water Bodies

कुंडी भंडारे के कई नाम हैं। कोई इसे खूनी भंडारा, नैहरे खैरे जारियां तो कोई कुंडी का भंडार भी कहता है। इतिहासकारों के मुताबिक अब्दुल रहीम खान-ए-खाना मुलक शासक जहांगीर के शासनकाल में शहजादा परवेज के सूबेदार थे। उन्होंने इस जल स्त्रोत का निर्माण कुछ इस तरह कराया था कि आज भी 108 कुंडों में हमेशा पानी का बहाव बना हुआ है। यहां से आज भी पानी की सप्लाई की जाती है।
इतिहासकार कमरुद्दीन फलक बताते हैं कि जिस जगह खूनी भंडारा बना है, उस स्थान पर कुछ आक्रमणकारियों ने व्यापारियों के जत्थे को लूट लिया था। उनके शव उसी स्थान पर पड़े थे। जैसे ही उनके शव वहां से हटाए गए तो वहां से पानी का भंडार निकल पड़ा। तब से इसे खूनी भंडारा और कुंडी भंडारा कहा जाने लगा।
कुंडी भंडारे से पानी की सप्लाई की जो प्रक्रिया है, वह गुरुत्वाकर्षण के नियम के विपरीत है। 80 फीट गहराई से पानी बिना किसी पंप के आगे बढ़ता है। यह पानी बहता हुआ नहीं दिखता, बल्कि छतों से टपकता रहता है और बूंदों के रूप में नजर आता है। करीब 3.9 किमी तक चलने के बाद ये बूंदें अंतिम कुंडी तक पहुंचती हैं और जमीन पर आ जाती हैं। कुंडी भंडारे का पानी मिनरल वाटर से भी शुद्ध है। कई एजेंसियों ने यहां के पानी की जांच की तो पता चला कि इसकी पीएच वैल्यू 2 है। पानी की शुद्धता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुंडियों में कैल्शियम की बड़ी-बड़ी परतें बन गई हैं।
कुंडी भंडारे को देखने के लिए नगर निगम ने लिफ्ट लगाई है। इसके जरिए लोग 80 फीट गहरे कुएं में उतरते हैं। वहां से फिर अन्य कुंडों तक पहुंचते हैं। इसे देखने के लिए देश- विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इसे यूनेस्को के विश्व धरोहर में शामिल करने की मांग भी हो रही है।
कुंडी भंडारा या खूनी भंडारा महाराष्ट्र की सीमा से सटे मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में नगरवासियों को पेयजल उपलब्ध करवाने की एक जीवित भू-जल संरचना है। मध्यकालीन भारत की इंजीनियरिंग कितनी समृद्ध रही होगी यह बुरहानपुर के कुंडी भंडारे को देखने से ही पता चलता है। 400 साल पुरानी ये जल यांत्रिकी आधुनिक युग के लिए भी एक कठिन पहेली है। उस समय कैसे सतपुड़ा की पहाड़ियों के पत्थरों को चीरकर नगर की जल आवश्यकताओं को पूरा किया गया होगा।
बुरहानपुर शहर से छह किलोमीटर दूर सतपुड़ा की तलहटी में अब्दुल रहीम खान-ए-खाना को एक जल स्रोत मिला और उनके मन में इस जल को नगर तक पहुंचाने का विचार पलने लगा। रहीम ने इस कार्य के लिए अभियांत्रिकी में कुशल अपने कारीगरों से मशविरा किया और इस जल को नगर तक लाने के लिए 1612 ईंस्वीं में जमीन से 80 फीट नीचे घुमावदार नहरों के निर्माण पर कार्य शुरू हो गया। दो साल तक अनवरत चले खनन कार्य और पत्थरों से चिनाई के बाद तीन किलोमीटर लंबी नहर के जरिए शुद्ध पेयजल को को सन् 1615 ईसवी में जाली करंज तक पहुंचाया गया।
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