‘चेतक’ को दौड़ाने वाले राहुल अब नहीं संभालेंगे बजाज में अहम रोल, 1 अप्रैल से बनेंगे नॉन एग्जीक्यूटिव चेयरमैन

मुंबई. देश के जाने-माने बिजनेसमैन और लंबे समय तक बजाज समूह के चेयरमैन रहे राहुल बजाज (Rahul Bajaj) के रोल में अहम बदलाव हुआ है. राहुल बजाज अब कंपनी के फैसलों में सीधे हस्तक्षेप नहीं करेंगे. अब वह कंपनी बोर्ड के नॉन एग्जीक्यूटिव चेयरमैन की भूमिका में रहेंगे. आपको बता दें कि साल 1972 में बजाज ऑटो ने देश में अपने चेतक स्कूटर को लांच किया. इस स्कूटर ने बाजार में आते ही धूम मचा दी थी और देश के युवाओं की पहली पसंद बन चुकी थी. आपको ये जानकार हैरानी होगी कि उस दौर में इस स्कूटर का वेटिंग परियड 4 से 5 साल का था. वहीं, कंपनी ने बीते हफ्ते चेतक को इलेक्ट्रिक वर्जन के साथ फिर से री-लॉन्च किया है.
क्या हुआ बदलाव- राहुल बजाज 1 अप्रैल 1970 से कंपनी के डायरेक्टर है. 1 अप्रैल 2015 को उन्हें फिर से कंपनी के बोर्ड में 5 साल के लिए डायरेक्टर बनाया गया. 31 मार्च 2020 को उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है. 1 अप्रैल 2020 से राहुल बजाज कंपनी में नॉन एग्जीक्यूटिव चेयरमैन (non-executive Chairman of Bajaj Auto) की भूमिका में रहेंगे.
राहुल बजाज और राजीव बजाज
राहुल बजाज के बारे में जानिए- राहुल बजाज का जन्म 10 जून 1938 को एक मारवाड़ी परिवार में बंगाल प्रेसिडेंसी (आजादी से पहले का पश्चिम बंगाल) में हुआ था. राहुल बजाज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और समाजसेवी जमनालाल बजाज के पोते हैं. बचपन से ही व्यवसायिक परिवार से ताल्लूक रखने वाले राहुल बजाज के रगो में भी बिजनेस ही दौड़ता था.
दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफ़न कॉलेज से इकोनॉमिक ऑनर्स करने के बाद राहुल बजाज ने तीन साल तक बजाज इलेक्ट्रिकल्स कंपनी में ट्रेनिंग की. इसी दौरान उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से वक़ालत की पढ़ाई भी की हैं. राहुल बजाज ने 60 के दशक में अमेरिका के हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल से एमबीए की डिग्री ली थी.
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पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 1968 में 30 वर्ष की उम्र में जब राहुल बजाज ने ‘बजाज ऑटो लिमिटेड’ के सीईओ का पद संभाला तो कहा गया कि ये मुकाम हासिल करने वाले वो सबसे युवा भारतीय हैं. जब राहुल बजाज के हाथों में कंपनी की कमान आई तब देश में ‘लाइसेंस राज’ था यानी देश में ऐसी नीतियां लागू थीं जिनके अनुसार बिना सरकार की मर्ज़ी के उद्योगपति कुछ नहीं कर सकते थे.

बजाज चेतक स्कूटर
ये व्यापारियों के लिए मुश्किल परिस्थिति थी. उत्पादन की सीमाएं तय थीं. उद्योगपति चाहकर भी मांग के अनुसार पूर्ति नहीं कर सकते थे. उस दौर में ऐसी कहानियां चलती थीं कि किसी ने स्कूटर बुक करवाया तो डिलीवरी कई साल बाद मिली.
जिन परिस्थितियों में अन्य निर्माताओं के लिए काम करना मुश्किल था, उन्हीं परिस्थितियों में बजाज ने कथित तौर पर निरंकुश तरीक़े से उत्पादन किया और ख़ुद को देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक बनाने में सफलता हासिल की. बजाज 1965 में तीन करोड़ के टर्नओवर से 2008 में करीब दस हज़ार करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच गई.
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Tags: Bajaj Group, Business news in hindi
FIRST PUBLISHED : January 30, 2020, 16:01 IST
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