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हरियाणा एग्‍ज‍िट पोल सही साबित हुए, तो राहुल गांधी के लिए क्‍या होंगे मायने?

हरियाणा और जम्‍मू-कश्‍मीर में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों का सभी को इंतजार है. लेकिन, एग्‍ज‍िट पोल के नतीजों ने रोमांच थोड़ा कम कर दिया है. इसकी वजह यह है कि लगभग सभी एग्‍ज‍िट पोल्‍स के नतीजे एक ही दिशा में जा रहे हैं. सबका संदेश यही है कि हरियाणा में बीजेपी सरकार की विदाई और जम्‍मू-कश्‍मीर में कांग्रेस-नेशनल कॉन्‍फ्रेंस गठबंधन की बढ़त. वैसे, तो एग्‍जिट पोल्‍स के नतीजों पर पिछले कुछ समय से सवाल उठते रहे हैं, लेकिन अगर वास्‍तविक नतीजे भी ऐसे ही हुए तो इसके क्‍या मायने होंगे? खास कर राहुल गांधी के लिए? हम यहां इन्‍हीं सवालों पर बात करेंगे.

यह तय है कि आठ अक्‍तूबर को जो भी नतीजे आएंगे, उनका असर हरियाणा और जम्‍मू-कश्‍मीर तक ही सीमित नहीं रहेगा। जैसा एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं, वैसा हुआ तो एक दशक बाद हरियाणा में कांग्रेस सरकार की वापसी होगी. इस नतीजे का असर राहुल गांधी की राजनीति पर भी पड़ेगा। साथ ही, महाराष्‍ट्र और झारखंड के विधानसभा चुनावों के समीकरणों पर भी.

ईवीएम से निकले नतीजे अगर एग्जिट पोल के नतीजों जैसे ही आए तो राहुल गांधी के लिए यह मास्‍टर स्‍ट्रोक जैसा होगा. लगभग सभी एग्‍जिट पोल के नतीजों में हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनते दिखाया गया है. जम्‍मू-कश्‍मीर में कांग्रेस-नेशनल कॉन्‍फ्रेंस गठबंधन को बढ़त बताई गई है.

…तो नहीं चलेगा ‘पप्‍पू’ वाला नैरेटिव
अगर नतीजे एग्‍जिट पोल नतीजों की तर्ज पर ही आए तो यह तय हो जाएगा कि आने वाले चुनावी मुकाबले मोदी बनाम राहुल की तर्ज पर लड़े जाएंगे. जो भाजपा राहुल गांधी को ‘पप्‍पू‘ कह कर उनके अपरिपक्‍व नेता होने का संदेश प्रचारित करती रही है, वह नैरेटिव शायद कमजोर पड़ जाए.

राहुल ने कांग्रेस को दे दिया पूरे देश में चलने वाला मुद्दा?
राहुल गांधी यह भी साबित करते दिखेंगे कि उन्‍होंने भाजपा की काट के लिए जो मुद्दा चुना है, वह काम कर रहा है. संविधान बचाओ, आरक्षण बचाओ का मुद्दा. इस मुद्दे की खासियत यह भी है कि इसे देश भर में कहीं भी चलाया जा सकता है.

राहुल का प्रदर्शन अगर लगातार ऐसा रहा तो 2029 के लिए भी उनकी तैयारी का आधार मजबूत होता जाएगा. राहुल गांधी का लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनना इस दिशा में एक अहम पड़ाव माना जा सकता है. इस पद पर जाने के बाद राहुल ने बीजेपी और सरकार को घेरते हुए अपना अलग रूप भी दिखाया है.

कांग्रेस को हरियाणा की जनता ने अगर सरकार बनाने का जनादेश दिया तो राहुल के लिए एक फौर चुनौती भी खड़ी होगी. यह चुनौती होगी राज्‍य के कांग्रेसी नेताओं की गुटबाजी खत्‍म करने की. चुनाव के बीच भी यह साफ दिखा कि राज्‍य में कांग्रेस मुख्‍य रूप से सैलजा और हुड्डा खेमे में बंटी है.

मुख्‍यमंत्री चुनना राहुल की पहली बड़ी चुनौती होगी. सैलजा कह चुकी हैं कि कांग्रेस इस बार दलित सीएम को मौका दे सकती है. अगर ऐसा हुआ तो हुड्डा खेमा नाराज होगा. चुनाव में हुड्डा खेमा की ही ज्‍यादा चली है. टिकट बंटवारे में भी और अन्‍य मामले में भी. ऐसे में हुड्डा खेमा को नजरअंदाज करना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा.

कहने को यह सब सिरदर्द कांग्रेस अध्‍यक्ष मल्‍ल‍िकाजु्रन खड़गे का होगा, लेकिन असल में राहुल को ही जूझना होगा. हुड्डा खेमा राहुल के ज्‍यादा करीब भी बताया जाता है. ऐसे में एग्‍ज‍िट पोल के मुताबिक नतीजे आने पर राहुल को कांग्रेस पर नकारात्‍मक असर न हो, यह भी देखना पड़ेगा.

विपक्षी गठबंधन में राहुल की स्‍वीकार्यता और बढ़ेगी
विपक्षी गठबंधन (इंडिया) ने लोकसभा में तो राहुल को नेता प्रतिपक्ष माना ही है और कांग्रेस की सदस्‍य संख्‍या के मद्देनजर उन्‍हें मानना ही था. लेकिन, हरियाणा और जम्‍मू-कश्‍मीर में कांग्रेस के अच्‍छे चुनावी नतीजे आने पर ‘इंडिया’ में शामिल दलों को लोकसभा से बाहर भी राहुल को गंभीरता से लेना होगा. इसका असर राज्‍यों के विधानसभा चुनावों में सीट बंटवारे पर होने वाली बातचीत में कांग्रेस के पक्ष में जाएगा.

झारखंड और महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनावों पर असर
झारखंड और महाराष्‍ट्र में कुछ ही दिनों में चुनावों की घोषणा होने वाली है. झारखंड में ‘इंडिया’ सत्‍ताधारी गठबंधन है. भले ही इस गठबंधन में बड़ा दल क्षेत्रीय झारखंड मुक्ति मोर्चा है, लेकिन आठ अक्‍तूबर के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहे तो राहुल गांधी की स्‍वीकार्यता इन राज्‍यों में भी बढ़ेगी और सीटों के बंटवारे में कांग्रेस अपने लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा फायदे वाली डील कर सकने की स्थिति में होगी.

महाराष्‍ट्र में भी उद्धव ठाकरे और शरद पवार जैसे क्षेत्रीय क्षत्रपों को कांग्रेस की बात को वजन देना होगा। उम्‍मीद है कि दशहरे के मौके पर, 12 अक्‍तूबर को महाराष्‍ट्र में कांग्रेस, शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) और राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के बीच सीटों पर सहमति बन जाए और इसकी घोषणा भी हो जाए।

…और अंत में एग्‍जिट पोल की बात
हमने यह आकलन एग्‍ज‍िट पोल के नतीजों के आधार पर किया है. एग्‍जिट पोल की विश्‍वसनीयता अक्‍सर सवालों के घेरे में रही है. कई बार इनके परिणाम गलत साबित भी हुए हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में ही ज्‍यादातर एग्जिट पोल के नतीजों में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए के लिए करीब 400 सीटों के साथ भारी जीत की भविष्‍यवाणी की गई थी, लेकिन आईं 293 सीटें.

इसी तरह 2023 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में एग्‍ज‍ि‍ट पोल्‍स कांग्रेस की जीत बता रहे थे, लेकिन जीत गई भाजपा. वह भी 50 सीटें लाकर. 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव याद करें तो तब भी एग्‍जिट पोल्‍स में त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान लगाया गया था. जब वास्‍तविक नतीजे आए तो भाजपा को 325 सीटों के साथ भारी बहुमत मिला था.

Tags: Haryana election 2024, Jammu kashmir election 2024, Narendra modi, Rahul gandhi


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एडवोकेट अरविन्द जैन

संपादक, बुंदेलखंड समाचार अधिमान्य पत्रकार मध्यप्रदेश शासन

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